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________________ ( ५७८) थोकडा संग्रह। * बेदना-पद * (श्री पन्नवणाजी सूत्र ३५ वां पद ) जीव सात प्रकार से वेदना वेदे-१ शीत २ द्रव्य ३ शरीर ४ शाता ५ असाता(दुख) ६ अभूगीया ७ निन्दा द्वार। १ वेदना३ प्रकार की--शीत, उष्ण और शीतोष्ण समुच्चय जीव ३ प्रकार की वेदना वेदे । १..२-३ नारकी में उष्ण वेदना वेदे। कारण नेरिया शीत ये निय! हैं)। चौथी नारकी ( नरक ) में उष्ण वेदना के वेदक अनेक (विशेष), शीत वेदना वाला कम । (दो वेदका) पाचवी नारकी में उष्ण वेदना के वेदक कम, शीत वेदना के वेदक विशेष । छठ्ठी नरक में शीत वेदना और सातवीं नरक में महाशीत वेदना है शेष २३ दण्डक में तीनों ही प्रकार की वेदना पावे । २ वेदना चार प्रकार की द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव से । समुच्चय जीव और २४ दण्डक में चार प्रकार की वेदना वेदी जाती है। द्रव्य वेदना=इष्ट अनिष्ट पुगलों की वेदना । क्षेत्र वेदना नरकादि शुभाशुभ क्षेत्र की वेदना । काल वेदना: शीत उष्ण काल की वेदना । भाव वेदना मंद तीव्र रस (अनुभाग) की। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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