________________
(५७०)
थोकडा संग्रह।
शुक्ल ध्यान के ४ अवलम्बन-१ क्षमा २ निर्लोभता ३ निष्कपटता ४ मदरहितता ।
शुक्ल ध्यान की ४ अनुप्रेक्षा-१ इस जीव ने अनन्त वार संसार भ्रमण किया है ऐसा विचारे २ संसार की समस्त पौगलिक वस्त अनित्य है। शुभ पुद्गल अशुभ रूपसे और अशुभ शुभ रूप से परिणमते हैं, अतः शुभाशुभ पुद्गलों में आसक्त बन कर गग द्वेष न करना ३ संसार परिभ्रमण का मूल कारण शुभ कर्भ है कम बन्ध का मूल कारण ४ हेतु हैं। ऐसा विचारे । ४ कर्म हेतुओं को छोड़ कर स्वसत्ता में रमण करने का विचार करना. ऐसे विचारों में तन्मय ( एक रूप ) हो जाने को शुक्ल ध्यान कहते हैं।
॥ इति ४ ध्यान सम्पूर्ण ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org