________________
आराधना पद।
(५७१)
Free आराधना पद श्री भगवतीजी सूत्र, शतक ८ उद्देशा १०
श्राराधना ३ प्रकार की-ज्ञान की, दर्शन (समकित) की और चारित्र की आराधना ।
ज्ञानाराधना-उ० १४ पूर्व का ज्ञान, मध्यम ११ अंग का ज्ञान, ज०८ प्रवचन का ज्ञान ।
दर्शनाराधना-उ० क्षायक समकित, मध्यम क्षयो. पशम समकित ज० सास्वादान समकित ।।
चारित्राराधना-उ० यथाख्यात चारित्र, मध्यम परिहार विशुद्ध चारित्र, ज. सामायिक चारित्र । उ० ज्ञान आ० में दर्शन आ० दो ( उत्कृष्ट और मध्यम) उ. " " चारित्र " " ( " ") उ. दर्शन" " " तीन (ज० म० उ०) उ." " ज्ञान " " ( " ) उ. चारित्र" " " " ( " उ. " " दर्शन ॥ " ( " ) उ. ज्ञान " वाला ज० १ भव करे, उ० २ भव करे म० " " " २ " " " ३ " " ज०" " "३" " " १५ " " दर्शन और चारित्र की आराधना भी ऊपर अनुसार।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org