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चार ध्यान ।
( ५६६)
२ निःसर्ग ( ज्ञान से उत्पन्न ) रुचि ३ उपदेश रुचि ४ सूत्र-सिद्धान्त-आगम रुचि ।
धर्म ध्यान के ४ अवलम्बन-बांचना, पृच्छना परावर्तना और धर्म कथा। .. धर्म ध्यान की ४ अनुप्रेक्षा-१एगचाणुपेहा जीव अकेला आया, अकेला जायंगा एवं जीव के अकेले पन ( एकत्व ) का विचार । २ अणिचाणु पेहा संसार की अनित्यता का विचार ३ असरणाणु पेहा संसार में कोई किसी को शरण देने वाला नहीं, इसका विचार और ४ संसाराणुपेहा संसार की स्थिति ( दशा का विचार करना।
(४) शुक्ल ध्यान के ४ पाये-१ एक एक द्रव्य में भिन्न भिन्न अनेक पर्याय-उपनवा, विन्हेवा, धुवेवा,
आदि भावों का विचार करना २ अनेक द्रव्यों में एक भाव (अगुरु लघु आदि) का विचार करना । ३ अचलावस्था में तीनों ही योगों का निरोध करना (रोकना) ३ चौदहवें गुणस्थानक की सूक्ष्म क्रिया से भी निवर्तन होने का चितवना।
शुक्ल ध्यान के ४ लक्षण-१देवादि के उपसर्ग से चलित न होवे २ सूक्ष्म भाव ( धर्म का ) सुन ग्लानि न लावे । ३ शरीर-आत्मा को भिन्न २ चिंतवे और ४ शरीर को अनित्य समझ कर व पुद्गल को पर वस्तु जानकर इनका त्याग करे।
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