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________________ षटद्रव्य पर ३१ द्वार। (५६३) १७ जीव द्वार-जीवास्ति काय जीव है । शेष ५ द्रव्य अजीव हैं। १८ मूर्ति द्वार-पुद्गल रूपी है। शेष अरूपी हैं कर्म के साथ जीव भी रूपी है। १६ प्रदेश द्वार-५ द्रव्य सप्रदेशी हैं । काल द्रव्य अप्रदेशी है। धर्म-अधर्म असंख्य प्रदेशी हैं । आकाश ( लोकालोक अपेक्षा ) अनन्त प्रदेशी है । एकेक जीव असंख्य प्रदेशी हैं । अनन्त जीवों के अनन्त प्रदेश है। पुद्गल परमाणु १ प्रदेशी है । परन्तु पुद्गल द्रव्य अनन्त प्रदेशी है। २० एक द्वार-धर्म, अधर्म, आकाश एकेक द्रव्य हैं। शेष ३ अनन्त हैं। २१ क्षेत्र क्षेत्री द्वार-आकाश क्षेत्र है। शेष क्षेत्री हैं । अर्थात् प्रत्येक लोकाकाश प्रदेश पर पाँचों ही द्रव्य अपनी २ क्रिया करते हुवे भी एक दूसरे में नहीं मिलते। २२ क्रिया द्वार-निश्चय से सर्व द्रव्य अपनी २ क्रिया करते हैं । व्यवहार से जीव और पुद्गल क्रिया करते हैं। शेष अक्रिय हैं। .. २३ नित्य द्वार-द्रव्यास्तिक नय से सब द्रव्य नित्य हैं। पर्याय अपेक्षा से सब अनित्य हैं । ब्यवहार नय से जीव, पुद्गल अनित्य हैं । शेष ४ द्रव्य नित्य हैं। २४ कारण द्वार-पांचों ही द्रव्य जीव के कारण हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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