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________________ (५६२) थोकडा संग्रह । ५ काल द्रव्य में ४ गुण-अरूपी, अचेतन,अक्रिय वर्तनागुण ६ पुद्गलास्ति में ४" -रूपी, अचेतन, सक्रिय, जीर्ण गलन १३ पर्याय द्वार-प्रत्येक द्रव्य की चार २ पर्याय हैं १ धर्मास्ति० की ४ पर्याय-स्कंध, देश, प्रदेश, अगुरु लघु २ अधर्मास्तिक "" - " " " " ३ श्राकाशास्ति०" " - " " " " ४ जीवास्तिक " " - अव्यावाध, अनावगाह, अमूर्त, " ५ पुद्गलास्ति० " " - वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श ६ काल द्रव्य० " " - भूत, भविष्य, वर्तमान, अगुरु लघु १४ साधारण द्वार-साधारण धर्म जो अन्य द्रव्य में भी पावे, जैसे धर्मास्तिक में अगुरु लघु, असाधारण धर्म जो अन्य द्रव्य में न पावे, जैसे धर्मास्तिकाय में चलन सहाय इत्यादि। १५ साधर्मी द्वार-षट् द्रव्यों में प्रति समय उतपाद व्यय है । क्योंकि अगुरु लघु पर्याय में पट् गुण हानि वृद्धि होती है । सो यह छः ही द्रव्यों में समान है। १६ परिणामी द्वार-निश्चय नय से छः ही द्रव्य अपने २ गुणों में परिणमते हैं । व्यवहार से जीव और पुद्गल अन्यान्य स्वभाव में परिणमते हैं । जिस प्रकार जीव मनुष्यादि रूपसे और पुद्गल दो प्रदेशी यावत् अनन्त प्रदेशी स्कन्ध रूप से परिणमता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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