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________________ द्रव्य पर ३१ द्वार | ५ शब्द ६ समभिरूढ " ७ एवं भूत " सकते हैं । 11 >" "1 19 31 Jain Education International क्षायक समकिति जीव " ( ५६२ ) " केवल ज्ञानी " सिद्ध अवस्था के " इस प्रकार सातों ही नय सब द्रव्यों पर उतारे जा " 19 ११ निक्षेप द्वार-निक्षेप ४-१ नाम २ स्थापना ३ द्रव्य और भाव निक्षेप | 11 १ द्रव्य के नाम मात्र को निक्षेप कहते हैं । २ द्रव्य की सदृश तथा असदृश स्थापना की ( आकृति को स्थापना निक्षेप कहते हैं । ३ द्रव्य की भूत तथा भविष्य पर्याय को वर्तमान में कहना सो द्रव्य निक्षेप | 19 ४ द्रव्य की मूल गुण युक्त दशा को भाव निक्षेप कहते हैं पद्रव्य पर ये चारों ही निक्षेप भी उतारे जा सकते हैं । 29 १२ गुण द्वार - प्रत्येक द्रव्य में चार २ गुण हैं । १धर्मास्ति काय में ४ गुण अरूपी, अचेतन, अक्रिय चलनसहा० 11 २ श्रधर्मास्ति " " ३श्राकाशास्ति " " स्थिर " "अवगाहनदान " 19 " चैतन्य, सक्रिय, और उप ४ जीवास्ति काय " योग, ज्ञान, दर्शन, चारित्र और वीर्य For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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