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________________ काय के बोल | ( ४५ ) दल नीचे व एक हजार योजन का दल ऊपर छोड़ कर बीच में एक लाख और २६ हजार योजन का पोलार है । इनमें 8 पाथड़ा = आंतरा है जिनमें असंख्यात नेरियों के रहने के लिये १५ लाख नरकावास व असंख्यात कुम्भियें हैं। इस के नीचे चार बोल - १ बीश हजार योजन का घनोदधि है २ असंख्यात योजन का धनवाय है ३ असंख्यात योजन का तनुवाय है ४ असंख्यात योजन का आकाशास्ति काय है । ४ पंक प्रभा नरकः - का पिंड एक लाख और बीस हजार योजन का है। जिसमें से एक हजार योजन का दल नीचे व एक हजार योजन का दल ऊपर छोड़ कर बीच में एक लाख और अट्ठारह हजार योजन का पोलार है । जिनमें ७ पाथड़ा व ६ अंतरा है । इनमें असंख्यात नेरियों के रहने के लिये दश लाख नरकावास व असंख्यात कुम्भियें हैं । इस के नीचे चार बोल १ बीश हजार योजन का घनोदधि है, २ असंख्यात योजन का घनवाय हैं, ३ श्रसंख्यात योजन का तनुवाय है, ४ असंख्यात योजन का आका शास्तिकाय है । ५ धूम्र प्रभा नरकः का पिंड एक लाख अट्ठारह हजार योजन का है । जिसमें से एक हजार योजन का दल नीचे व एक हजार योजन का ऊपर छोड़ कर बीचमें एक लाख सोलह हजार का पोलार है जिनमें ५ पाथड़ा व ४ अंतरा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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