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________________ (४६) थोकडा संग्रह। है। इनमें असंख्यात नेरियों के रहने के लिये तीन लाख नरकावास व असंख्यात कुम्भिये हैं। इसके नीचे चार बोल-१ बीश हजार योजन का घनोदधि है, २ असंख्यात योजन का घनवाय है, ३ असंख्यात योजन का तनुवाय है, ४ असंख्यात योजन का आकाशास्तिकाय है। ६ तमस् प्रभा नरकः--का पिंड एक लाख सोलह हजार योजन का है। जिसमें से एक हजार योजन का दल नीचे व एक हजार योजन का दल ऊपर छोड़ कर बीच में एक लाख चौदह हजार का पोलार है जिनमें ३ पाथड़ा व २ अांतरा है। इन में असंख्यात नेरियों के रहने के लिये ६६६६५ नरकावासा व असंख्यात कुम्भिये हैं इस के नीचे चार बोल १ बीस हजार योजन का घनोदधि २ असंख्यात योजन का घनवाय ३ असंख्यात योजन का तनुवाय ४ असंख्यात योजन का आकाशास्ति काय है। ७तमःतमस् प्रभानरका का पिंड एक लाख पाठ हजार योजन का है। ५२॥ हजार योजन का दल नीचे व ५२॥ हजार योजन का दल ऊपर छोड़ कर बीच में तीन हजार योजन का पोलार है । जिसमें एक पाथड़ा है अांतरा नहीं । यहां असंख्यात नेरियों के रहने के लिये असंख्यात कुम्भिय व पांच नरकावासा है। पांच नरकावासा-१ काल २ महा काल ३ रुद्र ४ महा रुद्र ५ अप्रतिष्टान । इस के नीचे चार बोल १ बीस हजार योजन का घनोदधि है २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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