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________________ थोकडा संग्रह । (४४) wwwww नरक का विवेचन । १पहलीरत्न प्रभा नरकः-का पिंड एक लाख अस्सी हजार योजन का है । जिसमें से एक हजार का दल नीचे व एक हजार का दल ऊपर छोड़ बीच में एक लाख ७८ हजार योजन की पोलार है । जिसमें १३ पाथड़ा व १२ अांतरा है इन में ३० लाख नरकावास है जिनमें असंख्यात नरिये और उनके रहने के लिये असंख्यात कुम्भिये हैं । इस के नीचे चार बोल है । १ बीस हजार योजन का घनोदधि है। २ असंख्यात योजन का धनवाय है ३ असंख्यात योजन का तनुवाय है ४ असंख्यात योजन का आकाशास्तिकाय है। २शर्कर प्रभा नरक:-कापिंड एक लाख बतीश हजार योजन का है। जिनमें से एक हजार योजन का दल नीचे व एक हजार योजन का दल ऊपर छोड़ कर बीच में एक लाख और तीश हजार का पोलार है इन में ११ पाथड़ा व १० प्रांतरा है जिनमें असंख्यात नेरियों के रहने के लिये २५ लाख नरकावास और असंख्यात कुम्भियें हैं। इस के नीचे चार बोल १ बीस हजार योजन का घनोदधि है २ असंख्यात योजन का धनवाय है ३ असंख्यात योजन का तनुवाय है ४ असंख्यात योजन का आकाशासित काय है। ३ बालु प्रभा नरका-इसका पिंड एक लाख और २८ हजार योजन का है। जिसमें से एक हजार योजन का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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