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________________ छ काय के बोल । (४३) पंचेन्द्रिय के भेदः-जिसके १ काय २ मुख ३ . नासिका ४ नेत्र ५ कान ये पांच इन्द्रिय हो उसे पंचेन्द्रिय कहते हैं । इनके चार भेद १ नरक २ तिर्यच ३ मनुष्य ४ देव । Nyasam १ नरक का विस्तार। नरक के सात भेद- १घमा २ वंशा ३ शिला ४ अंजना ५ रीष्टा ६ मघा ७ माघवती । सात नरक के गोत्र-१ रत्न प्रभा २ शर्कर प्रभा ३ वालु प्रभा ४ पंक प्रभा ५ धूम्र प्रभा ६ तमस् प्रभा ७ तमः तमस् प्रभा । सात नरक के ये सात गोत्र गुण निष्पन्न हैं, जैसे: १ रत्न प्रभा में रत्न के कुण्ड हैं। २ शर्कर प्रभा में मरडिया आदि कंकर हैं। ३ वालु प्रभा में वेलु (रेत) हैं। ४ पंक प्रभा में रक्त मांस का कीचड़ (कादव) है । ५ धूम्र प्रभा में धूम्र (धुवा ) है । ६ तमस् प्रभा में अंधकार है। ७ तमः तमस् प्रभा में घोरानघोर (घोरातिघोर) अंधकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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