SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 54
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थोकडा संग्रह | ३ शीप ४ जलोक ५ कीड़े ६ पोरे ७ लट ८ अलसिये ६ कृमी १० चरमी ११ कातर ( जलजन्तु ) १२ चुड़ेल १३ मेर १४ एल १५ वांतर (वारा) १६ लालि आदि बेइन्द्रिय के अनेक भेद हैं । बेइन्द्रिय का आयुष्य जघन्य अन्तमुहूर्त का, उत्कृष्ट बारह वर्ष का । इनका " कुल " सात लक्ष करोड़ जानना । त्री- इन्द्रिय- जिसके १ काय २ मुख ३ नासिका ये तीन इन्द्रिय होवे उसे त्री- इन्द्रिय कहते हैं । जैसे- १ जूँ २ लीख ३ खटमल ( मांकड़ ) ४ चांचड़ ५ कंथवे ६ घनेरे ७ उदई ( दीमक ) ८ इल्ली (झिमेल ) ६ भुंड १० कीड़ी ११ मकोड़े १२ घोड़े १३ श्रा १४ गधैये १५ कान खजुरे १६ सवा १७ ममोले आदि त्री इन्द्रिय के अनेक भेद हैं । इनका आयुष्य जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट ४६ नि का | इनका कुल आठ लक्ष करोड़ जानना । - 66 ܐܐ चौरिंद्रिय - जिसके १ काय २ मुख ३ नासिका ४ चक्षु ( ख ) ये चार इन्द्रिय होवे उसे चौरिन्द्रिय कहते हैं । जैसे - १ भँवरे २ भँवरी ३ बिच्छु ४ मक्खी ५ तीड़ ( टीढ़ ) ६ पतङ्ग ७ मच्छर ८ मसेल ६ डांस १० मंस ११ तमरा १२ करोलिया १३ कंसारी १४ तीड़ गोडा १५ कुंदी १६ केकड़े १७ बग १८ रुपेली आदि चौरिन्द्रिय के अनेक भेद हैं । इनका आयुष्य जघन्य अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट छः माह का । " कुल " नत्र लक्ष करोड़ जानना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy