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________________ Micr म. पुं., रूपी २००० १००० पुंडरीक,, शिखरी १००० ५०० १० द्रह जमीनपर १००० ५०० हृी २४१००२४० कीर्ति १२०५०१२० 19 ,,१० दे. ४१००२४० कुल १६२८०१६०० देव कुरु के ५ द्रह - निषेड़, देव कुरु, सूर्य, सूलस और विद्युतप्रभ द्रह | उत्तर कुरु के ५ द्रह - नीलवंत, उत्तर कुरु, चन्द्र, ऐशवर्त और मालवंत द्रह | (१०) नदी द्वार - १४५६०६० नदियें हैं । विस्तार तीचे अनुसारनि. ऊं- निकलता ऊंडी प्र ऊं. समुद्र में प्रवेश करते उंडी विस्तार प्र. वि= नि. वि= विस्तार 19 24 19 99 १ गङ्गा २ सिन्धु १३ रोहिता ४ रोहितंसा म. म. म. पद्म ५ हरिकता ६ हरिसलीला निषिध तिगच्छ ७ सीता म सीतोदा नीलवंत केशरी ६ नरकंता १० नारीकंता रूपी ११ रूपकूला 91 " :9 " 19 नदी पर्वत से कुंड से नि. ॐ नि. वि प्र. ऊं प्र. वि परि. नदि १) यो. ६२॥ यो. १४००० चूल हेम. पद्म गाउ ६ | यो. 19 31 Jain Education International " 93 महापुंड " पुंडरीक 39 31 59 51 34 ११ २ गाउ २५ यो. ५ यो. २५०यो. ५६००० 95 11 १२ सुवर्णकूला शिखरी १३ रक्ता १४ रक्तोदा ७८ विदेह की कुंडों से प्रथ्वीपर 39 59 ६४ नदी ११ 3 11 49 गाउ १२॥ यो। यो १२५ यो २८००० " 9 " " 19 ४ गाउ ५० यो. १० यो. ५००यो. ५३२००० "" "" " २ गाउ २५ यो. ५ यो, २५० यो. ५६००० ( २२७ ) 19 19 " 29 39 31 १ गाउ १२॥यो. २।। यो. १२५यो. २८००० 39 ܕܪ 34 99 " 91 गाउ ६.१॥ यो. ६२॥ायो. १४००० या. 29 " 15 95 For Private & Personal Use Only 91 31 1. 19 www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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