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________________ खण्डा जोयणा | शेष कूटों पर देव देवी के महल हैं । ४ वन में चार (१६) मेरु चूलोंपर १, जम्बू वृक्ष पर १, शाल्मली वृक्ष पर १, जिनगृह; कुल ६५ शाश्वत सिद्धायतन है । ( ५३५ ) (६) तांथ द्वार - ३४ विजय ( ३२ विदेह का, १भरत, १ ऐरा वर्त) में से प्रत्येक तीन २ लौकिक तीर्थ हैं। मगध, वरदास और प्रभास | जब चक्रवर्ती खण्ड साधने को जाते हैं तब यहां रोक दिये जाते हैं यहां अहम करते हैं । तीर्थकरों के जन्माभिषेक के लिये भी इन तीर्थों का जल और औषधि देवलांत है । (७) श्रेणी द्वार:- विद्य धरों की तथा देवों की १३६ श्रेणी हैं । वैताढ्य पर १० यो० ऊँच विद्या० की २ श्रेणी हैं दक्षिण श्रेणी में ५० और उत्तर श्रेणी में ६० नगर हैं । यहाँ से १० यो० ऊँचेपर अभियोग देव की दो श्रेणी ( उत्तर की, दक्षिण की ) हैं । एवं ३४ वैताढ्य पर चार २ श्रेणी है। कुल ३४४४ = १३६ श्रेणियें हैं | (८) विजय द्वार - कुल ३४ विजय है, जहां चक्रवर्ती ६ खण्ड का एक छत्र राज्य कर सकते हैं । ३२ विजय तो महाविदेह क्षेत्र के हैं, नीचे ( अनुसार: पूर्व विदेह सीता नदी पश्चिम विदेह उत्तर किनारे दक्षिण किनारे उत्तर किनारे ८ कच्छ विजय वच्छ विजय पद्म विजय For Private & Personal Use Only Jain Education International सीतोदा नदी ८ दक्षिण कि विप्रा विजय www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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