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________________ ( ५२८ ) थोकडा संग्रह। का भद्रशाल वन है। दक्षिण में निषिध तक देव कुरु और उत्तर में नीलवन्त तक उत्तर कुरु है । ये दोनों दो दो गजदन्त के करण अर्धचन्द्राकार हैं । इस क्षेत्र में युगल मनुष्य ३ गाउ की अवगाहना उछध आङ्गुल के और ३ पल्य के आयुष्य वाले रहते हैं । देव कुरु में कुड़ शाल्मली वृक्ष, चित्र विचित्र पर्वत १०० कंचन गिरि पर्वत और ५ द्रह हैं । इसी प्रकार उत्तर कुरु में भी हैं । परन्तु ये जम्बू सुदर्शन वृक्ष हैं। निषिध और महाहिमवत पर्वत के मध्य में हरिवास क्षत्र है । तथा नीलवन्त और रूपी पर्वत के बीच में रम्यक् वास क्षेत्र है । इन दो क्षत्रों में २ गाउ की अब गाहना और २ पल्य की स्थिति व ले युगल मनुष्य रहते हैं। ___महाहे मवन्त और चूल हेमवन्त पर्वत के बीच में हेमवाय क्षेत्र और रूपी तथा शिखरी पर्वत के मध्य में हिरणवाय क्षेत्र है इन दोनों क्षेत्रों में १ गाउ की अवगा. हना वाले और १ पल्य का प्रायुप्य वाले युगल मनुष्य रहते हैं। द० उ० चौड़ाई बाह जीवा धनुष्ट पीड यो कला यो कला यो कला ये कल दक्षिण भरत २३८३ . ६७५८-१२ १७६६१ क्षेत्र उत्तर हेमवाय हरिवास , महाविदेह , Jain Education International १८६२-७॥ १४४७१.६ १४५२८॥ २१०५५ ६७५५-३ ३७६७४.१६ ३८७४०.१० ८४२१-१ १३३६१६ ७३६०१.१७ ८४०१६.४ ३३६८४४ ३३७६७.७ १००००० १५८११३॥ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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