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छ लश्या ।
(४८७)
शुक्ल लेश्या की स्थिति (केवली आश्री) जघन्य अन्तमुहूर्त की उत्कृष्ट नव वर्ष न्यून क्रोड़ पूर्व की । देवता की लेश्या की स्थितिः-भवन पति और वाण व्यन्तर में कृष्ण लेश्या की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की उत्कृष्ट पल का असंख्यातवां भाग नील लेश्या की स्थिति जघन्य कृष्ण लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक उत्कृष्ट पल का असंख्यातवां भाग । कापोत लेश्या की स्थिति जघन्य नील लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक उत्कृष्ट पल का असंख्यातवाँ भाग । तेजो लेश्या की स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष की,मवनपति वाण व्यन्तर की उत्कृष्ट दो सागर और पल का असंख्यातवां भाग अधिक । वैमानिक देव की पद्म लेश्या की स्थिति जघन्य तेजो लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक । वैमानिक की उत्कृष्ट दश सागर और अन्तमुहूर्त अधिक। वैमानिक की शुक्ल लेश्या की स्थिति जघन्य पद्म लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति से एक समय अधिक उत्कृष्ट तेंतीश सागर और अन्तर्मुहूर्त अधिक।
१० लेश्या की गति द्वार-कृष्ण, नील, कापोत ये तीन अप्रशस्त व अधम लेश्या है जिनके द्वारा जीव दुर्गति को जाता है । तेजो, पद्म और शुक्ल इन तीन धर्म लेश्या के द्वारा जीव सुगति में जाता है।
११ खेश्या का चयन द्वार:-सर्व लश्या प्रथम
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