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________________ काय के बोल | ( ३७ ) संस्थान ध्वजा पताका के श्राकार है। वायु काय का " कुल " सात लाख करोड़ जानना । वनस्पति काय वनस्पति काय के दो भेदः - १ सूक्ष्म २ बादर । सूक्ष्म - सर्व लोक में भरे हुवे हैं । इनने से इनाय नहीं, मारने से मरे नहीं, अग्नि से जले नहीं, जल में ड्रे नहीं, आँखों से दीखे नहीं व जिसके दो भाग होवे नहीं उसे सूक्ष्म वनस्पति काय कहते हैं । बादर - लोक के देश में भरे हुवे हैं, हनने से हनाय, मारने से मरे, अग्नि में जले, जल में डूबे, आँखों से दिखे व जिसके दो भाग होवे, उसे बादर वनस्पति काय कहते हैं । वनस्पति काय के दो भेदः - १ प्रत्येक २ साधारण प्रत्येक के बारह भेद - १ वृक्ष २ गुच्छ ३ गुल्म ४ लता ५ वेल ६ पावग ७ तृण ८ वल्ली ६ हरित काय १० औषधि ११ जल वृक्ष १२ कोसण्ड एवं बारह | १ वृक्ष के दो भेद १ श्री २ बहु श्री एक अड्डी - एक बीज वाले और बहु अट्ठी - याने बहु बीज वाले एक ही - १ हरड़े, २ बेड़ा ३ आँवला ४ अरीठा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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