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थोकडा संग्रह ।
बादर वायु काय के १७ भेदः-१ पूर्व दिशा की वायु २ पश्चिम दिशा की वायु ३ उत्तर दिशा की वायु ४ दक्षिण दिशा की वायु ५ ऊर्ध्व दिशा की वायु ६ अधो दिशा की वायु ७ तिर्यक दिशा की वायु ८ विदिशा की वायुह चक्र पड़े सो भंवर वायु १० चारों कोनों में फिरे सो मंडल वायु ११ उद्धे चढ़े सो गुंडल वायु १२ बाजिन्त्र जैसे आवाज करे सो गुंज वायु १३ वृक्षों को उखाड़ डाले सो झंज (प्रभंजन ) वायु १४ संवतेक वायु १५ घन वायु १६ तनु वायु १७ शुद्ध वायु । ____ इसके सिवाय वायु काय के अनेक भेद हैं। बायु के एक फड़के में भगवान ने असंख्यात जीव फरमाये हैं । एक पर्याप्त की नेश्रा से असंख्यात अपर्याप्त है । खुले मुंह बोलने से, चिमटी बजाने से, अङ्गुलि आदि का कड़िका करने से, पंखा चलाने से, रेटिया कातने से, नली में फूकने से, सूप ( सुपड़ा ) झाटकने से, मूसल के खांड ने से, घंटी बजाने से, ढोल बजाने से, पीपी आदि बजाने से इत्यादि अनेक प्रकार से वायु के असंख्यात जीवों की घात होती है। ऐसा जान कर वायु काय के जीवों की दया पालने से जीव इस भव में व पर भव में निरावाध परम सुख पावेगा । वायु काय का आयुष्य जघन्य अन्तमुहूर्त का, उत्कृष्ट तीन हजार वर्ष का। वायु काय का
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