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________________ (४६४) थोकडा संग्रह। साधु की बारह पडिमा, ५ पांच इन्द्रिय निग्रह, २५ प्रकार की पडीलेहना, ३ गुप्ति, ४ अभिग्रह एवं ७०। ३ दया धर्म के आठ भेदः-१ स्वदया अर्थात् अपनी आत्मा को पाप से बचाव २ पर दया याने अन्य जीवों की रक्षा करे ३ द्रव्य दया याने देखा देखी दया पाले अथवा लजा से जीव की रक्षा करे तथा कुल आचार से दया पाले ४ भाव दया अर्थात् ज्ञान के द्वारा जीव को आत्मा जान कर उस पर अनुकम्पा लावे व दया लाकर जीव की रक्षा करे ५ व्यवहार दया श्रावक को जैसी दया पालने के लिए कहा है वो पाले घर के अनेक काम काज करने के समय यतना रक्खे ६ निश्चय दया याने अपनी अात्मा को कर्म बन्ध से छुड़ावे । विवेचनः-पुद्गल पर वस्तु है । इनके ऊपर से ममता हटा कर उसका परिचय छोड़े, अपने आत्मिक गुण में लीन रहे, जीव का कर्म रहित शुद्ध स्वरूप प्रगट करे , यह निश्चय दया है। चौदह गुणस्थानक के अन्त में यह दया पाई जाती है । ७ स्वरूप दया अर्थात् किसी जीव को मारने के लिये उसे (जीव को) पहिले अच्छी तरह से खिलाते हैं व शरीर पुष्ट करते हैं, सार समाल लेते हैं । यह दया ऊपर की तथा दीखावा मात्र है । परन्तु पीछे से उस जीव को मारने के परिणाम है । यह उत्तराध्ययन सूत्र के पातवें अध्ययन में बकरे के अधिकार से समझना । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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