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तीन जाग्रिका ( जागरण )।
(४६३)
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मोहित नहीं होवे ५ स्वधर्म की प्रशंसा करे ६ धर्म से भ्रष्ट होने वाले को मार्ग पर लावे ७ स्वधर्म की भक्ति करे ८ धर्म को अनेक प्रकार से दिपावे कृष्ण, श्रेणिक समान ।
३ चारित्राचार के ८ भेदः-१ इर्या समिति २ भाषा समिति ३ एषणा समिति ४ आयाण भएड मत निखेवणा समिति ५ उचार पासवण खेल जल संघाण परिठावणिया समिति ६ मन गुप्ति ७ वचन गुप्ति ८ काय गुप्ति ।
४ तपाचार के बारह भेदः-छे बाह्य और छ अभ्यन्तर एवं बारह । छे बाह्य तप के नाम-१ अनशन २ उणोदरी ३ वृत्ति संक्षेप ४ रस परित्याग ५ काय क्लेश ६ इन्द्रिय प्रति संलीनता। ले अभ्यन्तर तप के नामः१ प्रायश्चित २ विनय ३ वैयावच्च ४ समझाय ५ ध्यान ६ कायोत्सर्ग एवं सर्व १२ हुवे । इन में से इहलोक पर लोक के सुख की वाञ्छा रहित तप करे अथवा आजीविका रहित तप करे एवं तप के बारह प्राचार जानना ।
५ वीर्याचार के तीन भेदः-१ बल व वीर्य धार्मिक कार्य में छिपावे नहीं २ पूर्वोक्त ३६ बोल में उद्यम करे ३ शक्ति अनुसार काम करे एवं ३६ भेद आचार धर्म के कहे।
२क्रिया धर्म:-इस के ७० भेदों के नाम-चार प्रकार की पिण्ड विशुद्धि ४, ५ समिति, १२ भावना, १२
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