________________
( ६४१ )
धातु को पुष्ट करती है । जिनमें नुकसान होने पर
रोग की उत्पति
पुष्ट
नाड़िऍ वार्य धारण करती हैं ।
पित्त का प्रकोप तथा ज्वरादिक होने लग जाती है । तीसरी दश करने वाली हैं जो वीर्य को इनके अन्दर नुकसान होने पर स्वप्न दोष मुख - लाल पूति पेशाब आदि विकारों से निर्बलता आदि में वृद्धि होती है ।
गभ विचार |
एवं सर्व मिलाकर ७०० नाड़ी रस खेंच कर पुष्टि प्रदान करती हैं व शरीर को टिकाती हैं । नियमित रूप से चलने पर निरोग और नियम भङ्ग होने पर रोगी (शरीर ) हो जाता है ।
इसके सिवाय दोसौ नाड़ी और गुप्त तथा प्रगट रूप से शरीर का पोषण करती हैं । एवं सर्व नव सौ नाहिये हुई ।
उक्त प्रकार से नवमास के अन्दर सर्व अवयव सहित शरीर मजबूत बन जाता है । गर्भाधान के समय से जो स्त्री ब्रह्मचारिणी रहती है उस का गर्भ अत्यन्त भाग्य - शाली, मजबूत बन्धेज का बलवान तथा स्वरूप वान होता है न्याय नीति वाला और धर्मात्मा निकलता है । उभय कुलों का उद्धार करके माता पिता को यश देने वाला होता है और उसकी पांचों ही इन्द्रियें अच्छी होती हैं। गर्भाधान से लगा कर सन्तति होने तक जो स्त्री निर्दय
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org