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थोकडा संग्रह |
यता मिलती है | ये नःडिये वहां तक रस पहुँचा कर शरीर आदि को आरोग्य रखती हैं। नाडी में नुकसान होने से संधि', पक्षाघात (लकवा) पैर आदि का कूटना, कलतर, तोड़ काट, मस्तक का दुखना व आधातोड़ शीशी आदि रोगों का प्रकोप हो जाता है ।
तीसरी १६० नाडी नाभी से तिछ गई हुई हैं । ये दोनों हाथों की अंगुलिये तक चली गई हैं । इतना भाग इन नाडियों से मजबूत रहता है | नुकसान होने से पासा शूल, पेट के दर्द, मुंह के व दांतो के दर्द आदि रोग उत्पन्न होने लगते हैं ।
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चौथी १६० नाडी नामी से नीचे ममें स्थान पर फैली हुई हैं । जो अपान द्वार तक गई हुई हैं । इनकी शक्ति द्वारा शरीर का बन्धेज रहा हुवा हैं । इनके अन्दर नुकसान होने पर लघु नीत बड़ी नीत आदि की कबाजि - यत ( रुकावट ) अथवा अनियमित छूट होने लग जाती है । इसी प्रकार बायु कृनि प्रकोप, उदर विकार, अर्श चांदी प्रमेह पवनरोध पांडु रोग, जलोदर, कठोर, भगंदर, संग्रहणी आदि का प्रकोप होने लग जाता है।
नाभी से पच्चीश नाडी ऊपर की ओर श्लेष्म द्वार तक गई हुई हैं । जो श्लेष्म की धातु को पुष्ट करती हैं। इनमें नुकसान होने पर श्लेष्म, पीनस का रोग हो जाता है । अन्य पची नाडी इसी तरफ आकर पित्त
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