________________
( ४२८ )
गर्भ विचार
गुरु - हे शिष्य ! पन्न वा भगवति सूत्र का तथा ग्रंथकारों का अभिप्राय देखने पर, सर्व जन्म और मृत्यु के दुखों का मुख्यतः चौथा मोहनीय कर्म के उदय में समावेश होता है । मोहनीय में ज्ञानावरणीय, दर्शनावरीय और अन्तराय कर्म एवं तीन का समावेश होता है । ये चार ही कर्म एकांत पाप रूप हैं इनका फल असाता और दुख हैं इन चारों ही कमों के आकर्षण से आयुष्य कर्मबन्धता है व आयुष्य शरीर के अन्दर रह कर भोगा जाता है भोगने का नाम वेदनीय कर्म है इस कर्म में साता तथा असातावेदनीय का समावेश होता है और इस कर्म के साथ नाम तथा गोत्र कर्म जुड़ा हुवा है और ये आयुष्य कर्म के साथ सम्बन्ध रखते हैं ये चार कर्म शुभ तथा अशुभ एवं दो परिणामों से बन्धते हैं अतः इन्हें मिश्र कहते हैं इनके उदय से पुन्य तथा पाप की गणना की जाती है ।
थोकडा संग्रह |
इस प्रकार आठ कर्मों का बन्ध होता है और ये जन्म मरण रूप क्रिया के द्वारा भोगे जाते हैं । मोहनीय कर्म सर्व कर्मों का राजा है आयुष्य कर्म इसका दीवान है मन हजूरी सेवक है जो मोह राजा के आदेशानुसार नित्य नये कमों का संचय करके बन्ध बान्धता है । ये सब
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org