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________________ बड़ा बांसठीया । (३२६) योग १५, उपयोग १०-केवल का दो छोड़ कर, लेश्या ६। ___ २ असंज्ञी में-जीव का भेद १२--संज्ञी का दो छोड़ कर, गुणस्थानक २ पहेला, योग ६-२ औदारिक का, २ वकिय का, १ कार्मण का १ व्यवहार वचन, उपयोग ६.-२ ज्ञान का २ अज्ञान का २ दर्शन का, लेश्या ४ प्रथम नो संज्ञी नो असंज्ञी में जीव का भेद १ संज्ञी का पयोप्त, णस्थानक २, १३ वां, १४ वां, योग ७ केवल ज्ञान वत्, उपयोग २ केवल का, लेश्या १ शुक्ल । संज्ञी प्रमुख तीन बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व १ सर्व से कम संज्ञी २ इससे नो संज्ञी नो असंज्ञी अनन्त गुणा । ३ इससे असंज्ञी अनन्त गुणा । २० भव्य द्वार । १ भव्य में जीव का भेद १४ गुण स्थानक १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६। ... २ अभव्य में जीव का भेद १४, गुण स्थानक १ पहेला योग १३ अाहारिक के दो छोड़ कर, उपयोग ६ ३ अज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६।। ३ नो भव्य नो भव्य में जीव का भेद नहीं, गुण स्थानक नहीं, योग नहीं, उपयोग २ लेश्या नहीं। . भव्य प्रमुख तीन बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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