________________
( ३३० )
थोकडा संग्रह |
१ सर्व से कम भव्य २ इस से नो भव्य नो अभव्य अनन्त गुणा ३ इस से भव्य अनन्त गुणा | २१ चरम द्वार |
१ चरम में जीव का भेद १४, गुण स्थानक १४ योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६ ।
२ चरम में जीव का भेद १४, गुण स्थानक १ पहला, योग १३ आहारिक का दो छोड़ कर, उपयोग १ ३ अज्ञान ३ दर्शन, लेश्या ६ |
चरम प्रमुख दो बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व |
१ सर्व से कम चरम २ इस से चरम अनन्त गुणा । एवं दो गाथा के २१ बोल द्वार पर ६२ बोल कहे, तदुपरान्त अन्य वीतराग प्रमुख पांच बोल चौदह गुण स्थानक व पांच शरीर पर ६२ बोल
१ वीतराग में जीव का भेद १ संज्ञो का पर्याप्त, गुण स्थानक ४ ऊपर का योग ११ -२ आहारिक तथा २ वैक्रिय का छोड़कर, उपयोग ६ - ५ ज्ञान ४ दर्शन, लेश्या १ शुक्ल ।
२ समुच्चय केवली में जीव का भेद २ संज्ञी का, गुण स्थानक ११ ऊपर का, योग १५, उपयोग ६, ५ ज्ञान ४ दर्शन, लेश्या ६ ।
३ युगल ( युगलियों) में जीव का भेद २ संज्ञी
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org