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________________ ( ३२८) थोकडा संग्रह। २ अपर्याप्त में जीव का भेद ७, गुण स्थानक ३-१ २, ४, योग ५.२ औदारिक का, २ वैक्रिय का, १ कामण का, उपयोग ह.३ ज्ञान ३ अज्ञान ३ दर्शन लेश्या ६। ३ नो पर्याप्त नो अपर्याप्त में--जीव का भेद नहीं, गुणस्थानक नहीं, योग नहीं, उपयोग २ केवल का, लेश्या नहीं पर्याप्त प्रमुख तीन बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व १ सर्व से कम नो पर्याप्त नो अपर्याप्त २ इससे अपर्याप्त अनन्त गुणा ३ इससे पर्याप्त संख्यात गुणा । १८ सूक्ष्म द्वार १ सूक्ष्म में-जीव का भेद २ सूक्ष्म एकेन्द्रिय का अपर्याप्त व पर्याप्त, गुण स्थानक १ पहला, योग ३-२ औदारिक तथा १ कार्मण उपयोग ३-२ अज्ञान व १ अचक्षु दर्शन, लेश्या ३ पहेली। २ बादर में-जीवका भेद १२- सूक्ष्म का २ छोड़ कर, गुणस्थानक १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६। ३ नो सूक्ष्म नो बादर में-जीव का भेद नहीं गुणस्थानक नहीं, उपयोग २ केवल का, लेश्या नहीं । सूक्ष्म प्रमुख तीन बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व १ सर्व से कम नो सूक्ष्म नो बादर २ इससे बादर अनन्त गुणा ३ इससे सूक्ष्म असंख्यात गुणा । १६ संज्ञी द्वार १ संज्ञी में-जीव का भेद २, गुणस्थानक १२ पहेला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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