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________________ ( ३२४) थोकड। संग्रह। चक्षु दर्शनी असंख्यात गुणा ३ इससे केवल दर्शनी अनन्त गुणा ४ इससे अचक्षु दर्शनी अनन्त गुणा । १२ संयत द्वार १ संयत (समुच्चय संयम ) में जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुण स्थानक ह-छठे से चौदहवे तक योग १५ उपयोग ह-तीन अज्ञान के छोड़कर; लेश्या ६। २.३ सामायिक व छेदापस्थानिक में-जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुण स्थानक ४-छह से नवरे तक, योग १४ कार्मण का छोड़कर, उपयोग ७ । चार ज्ञान प्रथम व तीन दर्शन, लेश्या ६।। ४ परिहार विशुद्ध में-जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुण स्थानक २-छ। व सातदाँ, योग 8-४ मन के ४ वचन के १ औदारिक का, उपयोग ७-४ ज्ञान का ३ दर्शन का, लेश्या ३ ( ऊपर की)। ____५ सूक्ष्म संम्पराय में-जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त, गुण स्थानक १.दशवा, योग ६, उपयोग ७ लेश्या १-शुक्ल । ६ यथास्यात में-जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त गुण स्थानक ४. ऊपर के, योग ११-४ मन के ४ वचन के २ औदारिक के व १ कामेण का, उपयोग ह-तीन अज्ञान के छोड़कर, लेश्या १ शुक्ल । ७ संयता संयत में जीव का भेद १ संज्ञी का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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