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________________ बड़ा बांसठीया । ( ३२५ ) पर्याप्त गुण स्थानक १ पांचवाँ, योग १२-२ आहारिक का व एक कार्मण का एवं तीन छोड़कर, उपयोग ६.. तीन ज्ञान व तीन दर्शन लेश्या ६। ८ असंयत में-जीव का भेद १४, गुण स्थानक ४ प्रथम के, योग १३. आहारिक का २ छोड़कर, उपयोग : ३ ज्ञान के, ३ अज्ञान के, ३ दर्शन के, लेश्या । नोसंयत नो असंयत नो संयता संयत मेंजीव का भेद नहीं गुण स्थानक नहीं योग नहीं, उपयोग २ केवल का, लेश्या नहीं। __ संयत प्रमुख नव बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व । १ सर्व से कम सूक्ष्म संपराय चारित्री २ इससे परि. हार विशुद्धिक चारित्री संख्यात गुणा ३ इससे यथाख्यात चारित्री संख्यात गुणा ४ इससे छेदोपस्थापनिक चारित्री संख्यात गुणा ५ इससे सामायिक चारित्री संख्यात गुणा ६ इससे संयति विशेषाधिक ७ इससे संयता संयती असं. ख्यात गुणा ८ इससे नोसंयति नोसंयता संयति अनन्त गुणा ६ इससे असंयति अनन्त गुणा। १३ उपयोग द्वार १ साकार उपयोग में-जीव का भेद १४, गुण स्थानक १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६।। २ अनाकार उपयोग में-जीव का भेद१४, गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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