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________________ बड़ा बांसठीया। ( ३२३) अल्प बहुत्व-सर्व से कम मनः पयेव ज्ञानी, २ इससे अवधि ज्ञानी असंख्यात गुणा ३ इससे मति ज्ञानी व ४ श्रुत ज्ञानी परस्पर बराबर व पूर्व से विशेषाधिक ५ इससे विभंग ज्ञानी असंख्यात गुणा ६ इससे केवल ज्ञानी अनन्त गुणा ७ इससे समुच्चय ज्ञानी विशेषाधिक ८ इससे मति अज्ञानी व 8 श्रुत अज्ञानी परस्पर बराबर व पूर्व से अनन्त गणे । १० इससे समुच्चय अज्ञानी विशेषाधिक । ११ दर्शन द्वार १ चक्षु दर्शन में जीव का भेद ६-चौरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचीन्द्रय, संज्ञी पंचेन्द्रिय इन तीन का अपर्याप्त और पर्याप्तः गुण स्थानक १२ प्रथम; योग १४-कामण को छोड़कर,उपयोग १०-केवल के दो छोड़ कर; लेश्या ६। ___ २ अचक्षु दर्शन में-जीव का भेद १४, गुणस्थानक १२, योग १५, उपयोग १०, लैश्या ६ । अवधि दर्शन में-जीव का भेद २--संज्ञी का, गुण स्थानक १२, योग १५, उपयोग १०, लेश्या ६ ।। केवल दर्शन में-जीव का भेद १ संज्ञी पर्याप्त, गुणस्थानक २-१३ वां, १४ वां, योग ७ केवल ज्ञान वत्, उपयोग २-केवल का, लेश्या १ शुक्ल । ___चक्षु दर्शन प्रमुख चार बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व १ सर्व से कम अवधि दर्शनी २ इससे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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