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________________ ( ३२२) थोकडा संग्रह। २-३ मति ज्ञान श्रुत ज्ञान में जीव का भेद ६ सम्यक दृष्टि वत् , गुण स्थानक १० पहला, तीसरा, तेरहवां, चौदहवां छोड़ कर, यांग १५, उपयोग ७, ४ ज्ञान और ३ दर्शन, लेश्या ६ । ४ अवधि ज्ञान में जीव का भेद २ मंज्ञो का, गुग स्थानक १० मति ज्ञान वत्, योग १५, उपयोग ७, लश्या ६। ५ मनः पयव ज्ञान में जीव का भेद १ संज्ञी का पयोप्त गुण स्थानक ७ छठे से बारहवें तक, याग १४, कामण का छोड़कर, उपयोग ७, लेश्या ६। ६ केवल ज्ञान में जीव का भेद १ संज्ञी पर्याप्त गुण स्थानक २-तेरहवां चौदहवां, योग ७-सत्य मन, सत्य वचन व्यवहार मन, व्यवहार वचा, दो औदारिक का, एक कामेण एवं ७; उपयोग दो केवल के लेश्या १शुक्ल । ७-८-६ समुच्चय अज्ञान, मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान-इन तीन में जीव का भेद १४, गुण स्थानक २पहेला और तीसरा, योग १३-पारिक के दो छोड़कर, उपयोग ६-तीन अज्ञान और ३ दर्शन, लेश्या ६ । १० विभंग अज्ञान में-जीव का भेद २-संज्ञी का-गुण स्थानक २-पहेला और तीसरा, योग १३, उपयोग ६, लेश्या ६।। समुच्चय ज्ञान प्रमुख दश बोल में रहे हुवे जीवों का Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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