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________________ बड़ा बांसठीया । ( ३२१) norm.inmonam १ सवे से कम शुक्ल लेश्यी २ इस से पद्मलेश्यी संख्यात गुणा ३ इस से तेजो लेश्यी संख्यात गुणा ४ इस से अलेश्यी अनन्त गुणा ५ इस से कपोत लेश्यी अनन्त गुणा ६ इस से नील लेश्यी विशेषाधिक ७ इस से कुष्ण लेश्यी विशेषाधिक ८ इस से सलेश्यी विशेषाधिक। समकित द्वार। १ सम्यक दृष्टि में जीव का भेद ६-बेइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय, चौरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय एवं चार का अपर्याप्त और संज्ञी पंचेन्द्रिय का अपर्याप्त व पर्याप्त एवं ६, गुण स्थानक १२ पहेला और तीसरा छोड़कर, योग १५ उपयोग 8 पांव ज्ञान और चार दर्शन लेश्या ६। २ मिथ्या दृष्टि में जीव का भेद १४ गुण स्थानक १, योग १३ आहारिक के दो छोड़कर, उपयोग ६-३ अज्ञान और ३ दर्शन, लेश्या ६।। सम्यक् दृष्टि प्रमुख बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व । १ सवे से कम मिश्र दृष्टि २ इस से सम्यक् दृष्टि अनन्त गुणा ३ इस से मिथ्या दृष्टि अनन्त गुणा । १० ज्ञान द्वार। १ समुच्चय ज्ञान में जीव का भेद ६ सम्यक दृष्टि चत, गुण स्थानक १२, योग १५, उपयोग है, लेश्या ६ सम्यक दृष्टि वत् । Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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