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________________ थोकडा संग्रह | ( ३२० ) सकषाय प्रमुख ६ बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व १ सर्व से कम अकषायी २ इससे मान कषायी अनंत गुणा ३ इससे क्रोध कषायी विशेषाधिक ५ लोभ कषायी विशेषाधिक ६ सकषायी विशेषविक । दलेश्या द्वार १ सलेश्या में - जीव के भेद १४, गुण स्थानक १३ प्रथम योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६ । २- ३-४ कृष्ण. नील, कापोत लेश्या में जीव के भेद १४ गुण स्थानक ६ प्रथम योग १५ उपयोग १० केवल के दो छोड़कर लेश्या १ अपनी २ | ५ तेजोलेश्या में - जीव का भेद ३ - दो संज्ञो के और एक बादर एकेंद्रिय का अपर्याप्त गुण स्थानक ७ प्रथम योग १५, उपयोग १०, लेश्या १ अपने खुद की । ६ पद्म लेश्या में - जीव का भेद २ संज्ञी का, गुण स्थानक ७ प्रथम, योग १५ उपयोग १० लेश्या १ अपनी ७ शुक्ल लेश्या में - जीव के भेद २ संज्ञी के गुण स्थानक १३ प्रथम, योग १५ उपयोग १२, लेश्या १ अपनी | ८ अश्या में जीव का भेद नहीं, गुण स्थानक १ चौदहवां, योग नहीं, उपयोग २ केवल के. लेश्या नहीं सलेश्या प्रमुख आठ बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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