SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 328
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थोकडा संग्रह। ५ औदारिक मिश्र ७ कामण काय । उपयोग २--केवल दर्शन । लेश्या १--शुक्ल । सइन्द्रिय प्रमुख सात बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व १ सर्व से कम पंचेन्द्रिय २ इससे चौरिन्द्रिय विशेष धिक ३ इससे त्रिइन्द्रिय विशेषाधिक ४ इससे बेइन्द्रिय विशेषाधिक ५ इससे अनिन्द्रिय अनन्त गुणे (सिद्ध आश्री) ६ इससे एकेन्द्रिय अनंत गुणे ( वनस्पति आश्री) ७ इससे सइन्द्रिय विशेषाधिक। ४ काय द्वार १ सकाय में-जीव के भेद १४ गुण स्थानक १४ योग १५ उपयोग १२ लेश्या ६ २-३-४ पृथ्वा काय, अपकाय वनस्पति काय:इन तीनों में जीव के भेद ४ सूक्ष्म एकेन्द्रिय व बादर एकेन्द्रिय का अपर्याप्त और पर्याप्त एवं ४ गुण स्थानक ? प्रथम योग ३ दो औदारिक का और १ कार्मण काय उपयोग ३-२ अज्ञान और १ अचक्षु दर्शन लेश्या ४ प्रथम । ५-६ तेजस् काय, वायु काया-में जीव के भेद ४ पृथ्वी वत, गुण स्थानक १ प्रथम, योग तैजसू में ३ पृथ्वी वत् वायु में ५-दो औदारिक का और दो वैक्रिय का, एक कामेण उपयोग ३ पृथ्वी वत् लेश्या ३ प्रथम । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy