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________________ बड़ा बांसठीया। ( ३१७) ७ त्रस काय में-जीव के भेद १-एकेंद्रिय के चार छोड़ कर । गुण स्थानक १४, योग १५ उपयोग १२ लेश्या ६। ८अकाय-जीव के भेद नहीं, गुण स्थानक नहीं योग नहीं, उपयोग २ केवल के, लेश्या नहीं। सकाय प्रमुख आठ बोल में रहे हुवे जीवों का अल्प बहुत्व । १ सर्व से कम त्रस काय २ इससे तैजस काय असं. ख्यात गुणा ३ इससे पृथ्वी काय दिशाधेिक ४ इससे अप् काय विशेषाधिक ५ इससे वायु काय विशेषाधिक ६इससे अकाय अनन्त गुणा ७ इससे वनस्पति काय अनंत गुणा ८इससे सकाय विशेषाधिक । ५ योग द्वार सयोग में-जीव के भेद १४, गुण स्थानक १३ प्रथम योग १५ उपयोग १२, लेश्या ६ । २ मन योग में-जीव का भेद १ संज्ञी का पर्याप्त गुण स्थानक १३, योग १४, कार्मण का छोड़ कर, उपयोग १२ लेश्या ६। ३ वचन योग में जीव के भेद ५ बेइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय चौरिन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय एवं ५ का पर्याप्त गुण स्थानक १३, योग १४ कामण छोड़ कर उपयोग १२ लेश्या ६। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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