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________________ बड़ा बांसठीया। ( ३१५) ख्यात गुणा उससे देवाङ्गना संख्यात गुणी व उससे सिद्ध अनन्त गुणा व उनसे तियेच अनन्त गुणा । ३ इन्द्रिय द्वार १ सइन्द्रिय में--जीव के भेद १४, गुणस्थानक १२ प्रथम, योग १५, उपयोग १० केवल के दो छोड़ कर । लेश्या ६। २ एकेन्द्रिय में-जीव के भेद ४ प्रथम । गुणस्थानक १ प्रथम योग ५ -२औदारिक का, २ वैक्रिय का १ कार्मण काय । उपयोग ३.-२ अज्ञान का और १ अचक्षु दर्शन लेश्या ४ प्रथम। बेइन्द्रिय, त्रिइन्द्रिय चौरिन्द्रिय- इनमें जीव के भेद दो दो, अपर्याप्त और पर्याप्त । गुणस्थानक २ प्रथम । योग ४.-२ औदारिक का १ कार्मण काय १ व्यवहार वचन उपयोग बेइन्द्रिय में पांच उपयोग--२ ज्ञान अज्ञान--२ दर्शन चक्षु दर्शन और अचच दर्शन, लेश्या ३ प्रथम । पंचेन्द्रिय में-जीव के भेद ४--संज्ञी पंचेंद्रिय और असज्ञी पंचेंद्रिय इन दो का अपर्याप्त और पर्याप्त । गुण स्थानक १२ प्रथम योग १५ उपयोग १०-केवल के दो छोड़ कर । लेश्या ६। । . अनिन्द्रिय में-जीव का भेद १--संज्ञी का पर्याप्त । गुणस्थानक २-- (१३ वां और १४ वां ), योग ७-१ सत्य मन २ व्यवहार मन ३ सत्य वचन ४ व्यवहार वचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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