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________________ थोकडा संग्रह। और १ असंज्ञी पंचेंद्रिय का अपर्याप्त एवं ३, गुण स्थानक १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६ । ५ मनुष्यनी में-जीव के भेद २- संशी का । गुणस्थानक १४, योग १३ आहारिक के दो छोड़ कर, उपयोग १२, लेश्या ६। ६देव गति में-जीव के भेद ३-दो संज्ञी के और १ असंही पंचद्रिय का अपर्याप्त एवं ३ गुणस्थानक ४ प्रथम, योग ११-४ मनके, ४ वचन के, २ वैक्रिय के और १ कामेण काय एवं ११, उपयोग :-३ ज्ञान, ३ अज्ञान, ३ दर्शन एवं है, लेश्या ६। । ७ देवाङ्गना में-जीव के भेद २-संज्ञी का, गुणस्थानक ४ प्रथम, योग ११-४ मन का, ४ वचन का, २ वैक्रिय का १ कार्मण काय, उपयोग ६-३ अज्ञान, ३ ज्ञान, ३ दर्शन एवं ६, लेश्या ४ प्रथम । सिद्ध गति में-जीव का भेद नहीं, गुण स्थानक नहीं योग नहीं, उपयोग २. केवल ज्ञान और केवल दर्शन, तश्या नहीं। १रक गति प्रमुख आठ बोल में रहे हुवे जीवों का . अल्प वहुत्व । सर्व से कम मनुष्यनी उससे मनुष्य असंख्यात पुणा ( समुर्छिम के मिलने से ) उससे नेरिये असंख्यात पुणा उससे तिर्य चानी असंख्यात गुणी उससे देव असं Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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