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________________ बड़ा बांसठीया । ( ३१३ ) एवं २१ द्वार के बोल पर बासठ बोल उतारे हैं । बासठ बोल की विगत: - जीव के १४ भेद, गुण स्थानक १४, योग १५, उपयोग १२, लेश्या ६, एवं सर्व मिल कर ६१ बोल और एक अल्प बहुत्व का एवं ६२ बोल । १ समुच्चय जीव का द्वार १ समुच्चय जीव में- जीव के १४ भेद, गुणस्थानक १४ योग १५ उपयोग १२, लेश्या ६ । २ गाते द्वार · १ नरकगति में जीव के भेद तीन-संज्ञी का अप र्याप्त और पर्याप्त व अज्ञी पंचेन्द्रिय का अपर्याप्त । गुण स्थानक ४ प्रथम के, योगे ग्यारा ४ मन के ४ वचन के, १ वैक्रिय १ वैक्रियमिश्र, १ कार्मण काय एवं ११, उपयोग - ३ ज्ञान, ३ अज्ञान ३ दर्शन; लेश्या ३ प्रथम । २ तिर्यच गति में - जीव के भेद १४, गुणस्थानक ५ प्रथम, योग १३ आहारिक के दो छोड़ कर ) उपयोग ६- ३ ज्ञान, ३ अज्ञान, ३ दर्शन; लेश्या ६ । ३ तिर्यंचनी में - जीव के भेद २ -संज्ञी का । गुणस्थानक ५ प्रथम, योग १३ आहारिक के दो छोड़ कर । उपयोग ६-३ ज्ञान, ३ अज्ञान, ३ दर्शन; लेश्या ६ । ४ मनुष्य गति में - जीव के मेद ३ - संज्ञी के दो For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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