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( २६४)
थोकडा संग्रह।
RANANAAMANAM
आदि विविध रूप विविध क्रिया से बनावे उसे वैक्रिय शरीर कहते हैं इसके दो भेद । ...१ भव प्रत्यायक-जो देवता व नेरियों के स्वभाविक ही होता है।
२ लब्धि प्रत्यायेक-जो मनुष्य तिर्यंच को प्रयत्न से प्राप्त होवे।
३ आहारिक शरीर-जो चौदह पूर्वधारी महात्माओं को तपश्चर्यादिक योग द्वारा जब लब्धि उत्पन्न होवे तो तीर्थकर देवाधिदेव की ऋद्धि देखने को व मन की शङ्का निवारण करने को, उत्तम पुगलों का आहार लेकर, जघन्य पोन हाथ का व उत्कृष्ट एक हाथ का, स्फटिक समान सफेद व कोई न देख सके ऐसा शरीर बनाते है । जिससे इसे पाहारिक शरीर कहते हैं।
४ तेजस् शरीर-जो तेज के पुद्गलों से अदृश्य व मुक्त (खाये हुवे ) आहार को पचाव तथा लब्धिवंत तेजो लेश्या छोडे उसे तैजम शरीर कहते है।
५ कार्मण कर्म के पुद्गल से उत्पन्न होने वाला व जिसके उदय से जीव पुद्गल ग्रहण करके कमादि रूप में परिणमावे तथा आहार को खेवे उसे कामण शरीर कहते हैं।
. ३ संस्थान द्वार औदारिक शरीर में संस्थान ६-१समचतुरम् सं. स्थान २ न्यग्रोध परिमंडल संस्थान ३ सादिक संस्थान ४ वामन संस्थान ५ कुब्ज संस्थान ६ हुंड संस्थान ।
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