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________________ पांच शरीर । ( २६३) पांच शरीर श्री प्रज्ञप्तिजी ( पन्नवणा ) सूत्र के २१ वे पदमें वर्णित पांच शरीर का विवेचन । सोलह द्वार १ नाम द्वार २ अर्थ द्वार ३ संस्थान द्वार ४ स्वामी द्वार ५ अवगाहना द्वार ६ पुगल चयन द्वार ७ संयोजन द्वार ८ द्रव्याथे द्वार ६ प्रदेशार्थंक द्वार १० द्रव्याथेक प्रदेशार्थक द्वार ११ सूक्ष्म द्वार १२ अवगाहना अल्प बहुत्व द्वार १३ प्रयोजन द्वार १४ विषय द्वार १५ स्थिति द्वार १६ अन्तर द्वार। १ नाम द्वार १ औदारिक शरीर २ वैक्रिय शरीर ३ श्राहारिक शरीर ४ ते जम् शरीर ५ कार्मण शरीर । २ अर्थ द्वार १ उदार अर्थात् सब शरीरों से प्रधान, तीर्थकर, गणधर आदि पुरुषों को मुक्ति पद प्राप्त कराने में सहायीभूत, उदार कहेता सहस्र योजन मान शरीर इससे इसे औदारिक शरीर कहते हैं। . : २ वैक्रिय-जिसमें रूप परिवर्तन करने की शक्ति तथा एकके अनेक छोटे बड़े खेचर भूचर द्रश्य अद्रश्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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