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________________ तेतीश पदवी । ( २६१) ४५ समकित दृष्टि में १५ पदवी पाव-२३ में से सात एकेन्द्रिय रत्न और स्त्री छोड़ शेष १५ पदवी । . ४६ मिथ्या दृष्टि में १७ पदवी पावे-सात एकेन्द्रिय रत्न, सात पंचन्द्रिय रत्न, १४, १५ चक्रवर्ती १६ वासु. देव १७ मांडलिक। ४७ मति, श्रुत और अवधि ज्ञान में १४ पदवी पावेकेवली छोड़ शेष ८ उत्तम पदवी, स्त्री को छोड़ शेष ६ पंचन्द्रिय रत्न एवं (८४६) १४ पदवी । ४८ मनः पर्यव ज्ञान में ३ पदवी पावे १ तीर्थकर २ साधु ३ समकित । ४६ केवल ज्ञान केवल दर्शन में ४ पदवी पावे १ तीर्थकर २ केवली ३ साधु ४ समकित । ५० मति श्रुत अज्ञान में १७ पदवी पावे-सात एकेन्द्रिय रत्न, सात पंचेद्रिय रत्न, १४, १५ चक्रवर्ती १६ वासुदेव १७ मांडलिक। ५१ विभङ्ग ज्ञान में पदवी पावे-स्त्री को छोड़ शेष ६ पचन्द्रिय रत्न, ७ चक्रवर्ती ८ वासुदेव मांडलिक । ५२ चक्षु दर्शन में १५ पदवी पावे-केवली को छोड़ शेष ८ उत्तम पदवी और सात पंचेन्द्रिय रत्न एवं १५ पदवी। ५३ अचच दर्शन में २२ पदवी पावे-केवली नहीं। ५४ अवधि दर्शन में १४ पदवी पावे-केवली को Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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