SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 302
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थोकडा संग्रह | ३३ अन्य लिङ्ग में ४ पदवी पावे -१ केवली २ साधु "(३०) ३ श्रावक ४ समकित | ३४ गृहस्थ लिङ्ग मनुष्य में १४ पदवी पावे - नव उत्तम पदवी, और सात पंचेन्द्रिय रत्न में से गज श्रश्व को छोड़ शेष पांच एवं ( ६ + ५ ) १४ पदवी । ३५ संमूमि में ८ पदवी पावे-सात एकेन्द्रिय रत्न और एक समकित | ३६ गर्भज में १६ पदवी पावे - २३ में से सात एकेन्द्रिय रत्न छोड़ शेष १६ पदवी । ३७ श्रगर्भज में = पदवी पावे-संमूर्च्छ समान । ३८ एकेन्द्रिय में ७ पदवी पावे सात एकेन्द्रिय रत्न । ३६ तीन विकलेन्द्रिय में १ पदवी पावे - समकित ४० पंचेन्द्रिय में १५ पदवी पावे - २३ में से सात एकेन्द्रिय रत्न और केवली - ये आठ नहीं । ४१ अनिन्द्रिय में ४ पदवी पावे १ तीर्थंकर २ केवल ३ साधु ४ समकित । ४२ संयति में ४ पदवी पावे- अनिन्द्रिय समान । ४३ असंयति में २० पदवी पावे - २३ में से १ केवली २ साधु ३ श्रावक ये तीन छोड़ शेष २० पदवी । ४४ संयता संयति में १० पदवी पावे- स्त्री को छोड़ शेष ६ पंचेन्द्रिय रत्न ७ बलदेव ८ श्रावक ६ समकित १० मांडलिक । Jain Education International - For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy