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________________ तेंतीश पदवी। (२८६) २१ सात कम वेदक में २ पदवी पावे-साधु और श्रावक। २२ चार कर्म वेदक में चार पदवी पावे-१ तीर्थकर २ केवली ३ साधु ४ समकित । २३ जघन्य अवगाहना में १ पदवी पावे-समकित की। २४ मध्यम अवगाहना में १४ पदवी पावे-नव उत्तम पुरुष, पांच पंचेन्द्रिय रत्न-गज अश्व छोड़ कर-एवं +५ १४ पदवी पावे। २५ उत्कृष्ट अवगाहना में एक पदवी पाव-समकित । . २६ अढाई द्वीप में २३ पदवी पावे । २७ अढाई द्वीप के बाहर ४ पदवी पावे-१ केवली २ साधु ३ श्रावक ४ समकित । २८ भरत क्षेत्र में मध्यम पदवी ८ पावे-जव उत्तम पदवी में से चक्रवर्ती छोड़ शेष ८ पदवी । . २६ भरत क्षेत्र में उत्कृष्ट २१ पदवी पावे-वासुदेव, बलदेव नहीं। ३० उर्ध्व लोक में ५ पदवी पावे-१ केवली २ साधु ३ श्रावक ४ समकित ५ मांडलिक राजा । - ३१ अधः लोक तथा तिर्यक् (तिर्खे ) लोक में २३ पदंवी पावे। ३२ स्वयं लिङ्ग में ४ पदवी पावे-१ तीर्थ कर २ केवली ३ साधु ४ श्रावक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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