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________________ ( २५६) भोकडा संग्रह। नहीं कि यह किस का शब्द व गन्ध प्राख है बादमें वहाँ से इहा मतिज्ञान में प्रवेश करे । इहा जो विचारे कि यह अमुक का शब्द व गन्ध प्रमुख है परन्तु निश्चय नहीं होवे पश्चात् अवाप्त मति ज्ञान में प्रवेश करे। अवाप्त जिससे यह निश्चय हो कि यह अमुक का ही शद्ध व गन्ध है पश्चात् धारणा मति ज्ञान में प्रवेश करे । धारणा जो धार राखे कि अमुक शद्ध व गन्ध इस प्रकार का था। एवं इहा के ६ भेद:-श्रोत्रेन्द्रिय इहा, यावत् नो इन्द्रिय इहा । एवं अवाप्त के ६ भेद श्रोत्रेन्द्रिय, यावत् नोइन्द्रिय अवाप्त । एवं धारणा के ६ भेद श्रोतेन्द्रिय धारणा यावत् नो इन्द्रिय धारणा । इनका काल कहते हैं:-अवग्रह का काल एक समय से असंख्यात समय तक प्रवेश किये हुवे पुद्गलों को अन्त समय जाने कि मुझे कोई बुला रहा है। - इहा का काल, अन्तर्मुहूर्त, विचार हुवा करे कि जो मुझ बुला रहा है वो यह है अथवा वह ।। .. अवाप्त का काला-अन्तर्मुहूत-निश्चय करने का कि मुझे अमुक पुरुष ही बुला रहा है । शद्ध के ऊपर से निश्चय करे । .. धारणे का काल संख्यात वर्ष अथवा असंख्यात वर्ष तक धार राखे कि अमुक समय मैंने जो शद्ध सुना वो इस प्रकार है । अवग्रह के दश भेद, इहा के ६ भेद, अवाप्त . .. :. - - - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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