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________________ पांच ज्ञान का विवेचन । ( २५७) के ६ भेद, धारणा के ६ भेद एवं सर्व मिलकर श्रुत निश्रीत मति ज्ञान के २८ भेद हुवे । मात ज्ञान समुचय चार प्रकार का-१ द्रव्य से २ क्षेत्र से ३ काल से ४ भाव से १ द्रव्य से मति ज्ञानी सामान्य से उपदेश द्वारा सर्व द्रव्य जाने परन्तु देखे नहीं। २ क्षेत्र से मति ज्ञानी सामान्य से उपदेश के द्वारा सर्व क्षेत्र की बात जाने परन्तु देखे नहीं। ३ काल से मति ज्ञानी सामान्य से उपदेश के द्वारा सर्व काल की बात जाने परन्तु देखे नहीं । ४ भाव से-सामान्य से उपदेश के द्वारा सर्व भाव की बात जाने परन्तु देखे नहीं-नहीं देखने का कारण यह है कि मति ज्ञान को दर्शन नहीं है । भगवती सूत्र में पासइ पाठ है वो भी श्रद्धा के विषय में है परन्तु देखे ऐसा नहीं। श्रुत ( सूत्र ) ज्ञान का वर्णन। श्रत ज्ञान के १४ भेदः-१अक्षर श्रृत २ अनक्षर श्रुत ३ संज्ञी श्रुत ४ असंज्ञी श्रुत ५ सम्यक् श्रुत ६ मिथ्या श्रुन ७ सादिक श्रुत ८ अनादिक श्रुत ६ सपर्यवसित श्रुत १० अपर्यवसित श्रुा ११ गमिक श्रुा १२ अगमिक श्रुत १३ अंगप्रविष्ट श्रु। १४ अनंग प्रविष्ट श्रुत । १ अक्षर श्रुतः-इसके तीन भेद-१ संज्ञा अक्षर २ व्यंजन अक्षर ३ लब्धि अक्षर। १ संज्ञा अक्षर श्रुतः-अक्षर के आकार के ज्ञान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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