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________________ पांच ज्ञान का विवेचन । ( २५५) कान में जावे और ( सरावले में जल के समान ) उभराने ( बाहर निकलने ) लगे तब "हूँ" इस प्रकार बोल सके परन्तु समझ नहीं सके, इसे व्यंजनावग्रह कहते हैं । अर्थावग्रह के ६ भेद १ श्रोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रह २ चक्षुइन्द्रिय अर्थावग्रह ३ घ्राणेन्द्रिय अर्थावग्रह ४ रसेन्द्रिय विग्रह ५ स्पर्शन्द्रिय अर्थावग्रह ६ नोइन्द्रिय ( मन ) अर्थावग्रह । __श्रोत्रेन्द्रिय अर्थावग्रहः-जो कान के द्वारा शब्द का अर्थ ग्रहण करे। चक्षुन्द्रिय अर्थावग्रहः-जो चक्षु के द्वारा रूप का अर्थ ग्रहण करे। प्राणेन्द्रिय अर्थावग्रहः-जो नासिका के द्वारा गंध का अर्थ ग्रहण करे। - रसेन्द्रिय अर्थावग्रहः-जो जिह्वा के द्वारा रस का अर्थ ग्रहण करे । स्पर्शेन्द्रिय अर्थावग्रहः-जो शरीर के द्वारा स्पर्श का अर्थ ग्रहण करे। नोइन्द्रिय अर्थावग्रहः-जो मन द्वारा हरेक पदा. र्थ का अर्थ ग्रहण करे । व्यंजनावग्रह के चार भेद और अर्थावग्रह के ६ भेद एवं दोनों मिल कर अवग्रह के दश भेद हुवे । अवग्रह के द्वारा सामान्य रीति से अर्थ का ग्रहण होवे परन्तु जाने Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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