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________________ तेतीस बोल । वरणीय २ श्रृत ज्ञाना वरणाय ३ अवधि ज्ञाना वरणीय ४ मन पयव ज्ञाना वणीय ५ केवल ज्ञाना चरणीय । २ दशना वरणीय कम की नव प्रकृति-१ निद्रा २ निद्रा निद्रा ३ प्रचला ४ प्रचला प्रचला ५ थीणद्धि (स्त्यनर्द्धि ) (६) चक्षु दर्शना वरणीय (७) अचक्षु दर्शना वरणीय (८) अवधि दर्शना वरणीय (8) केवल दर्शना वरणीय। ___ (३, वेदनीय कर्म की दो प्रकृति-१ शाता वेदनीय २ अशाता वेदनीय । (४) मोहनीय कर्म की दो प्रकृति-१ दर्शन मोहनीय २ चरित्र मोहनीय। (५)आयुष्य कर्म की चार प्रकृति-१ नग्क आयुष्य २ तिर्यच आयुष्य ३ मनुष्य आयुष्य ४ देव अायुष्य । (६) नाम कर्म की दो प्रकृति-१ शुभ नाम २ अशुभ नाम। (७) गोत्र कर्म की दो प्रकृति-१ ऊंच गोत्र २ नीच गोत्र। (८) अन्तराय कर्म की पांच प्रकृति-१ दानान्तराय २ लाभान्तराय ३भोगान्तराय ४ उप भोगान्तराय ५वीर्यान्तराय __ बत्तीश प्रकार का योग संग्रहः-१ जो कोई पाप लगा होवे उसका प्रायश्चित लेने का संग्रह करना २ जो कोई प्रायश्चित ले उसको दूसरे प्रति नहीं कहने का संग्रह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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