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थोकडा संग्रह।
धृतं मायावी मलिन चित्त वाला अपना बोध बीज का नाश करने वाला अनुकम्पा रहित होता है ) तो महा मोहनीय।
२६ चार तीर्थ के अन्दर फूट पड़े ऐसी कथा वाता प्रमुख ( क्लेश रूप शस्त्रादिक ) का प्रयोग करे तो महा मोहनीय ।
२७ अपनी श्लाघा करवाने तथा मित्रता करने के लिये अधर्म योग वशीकरण निमित्त मंत्र प्रमुख का प्रयोग करे तो महा मोहनीय।
२८ मनुष्य सम्बन्धी भोग तथा देव सम्बन्धी भोग का अतृप्त पने गाढ परिणाम से आसक्त होकर आस्वादन करे तो महा मोहनीय ।।
२६ महर्द्धिक महाज्योतिवान महायशस्वी देवों के बल वीर्य प्रमुख का अवर्ण वाद बोले तो महा मोहनीय ।
३.. अज्ञानी होकर लोक में पूजा-श्लाघा निमित्त व्यन्तर प्रमुख देव को नहीं देखता हुवा भी कहे कि 'मैं देखता हूं' ऐसा कहे तो महा मोहनीय ।
इकत्तांश प्रकार के सिद्ध के आदि गुणः-आठ कर्म की ३१ प्रकृति का विजय से ३१ गुण ।
३१ प्रकृति नीचे लिखे अनुसार१ ज्ञानावरणीय कर्म की पांच प्रकृति-१ मति ज्ञाना
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