________________
तेतीस बोल ।
( २३३ )
(३) हिंसा दण्ड-यह मुझे मारता है, मारा था व
मारेगा ऐसा संकल्प करके मारे । (४) अकस्मात् दण्ड एक को मारने जाते समय
अचानक दूसरे की घात होवे ।। (५) दृष्टि विपर्यास दण्ड-शत्रु समझ कर मित्र को
मारे । (६) मृषावाद दण्ड-असत्य बोल कर दण्ड पावे । (७) अदत्ता दान दण्ड-चोरी करके दण्ड पावे । (८) अभ्यस्थ दण्ड-मन में दुष्ट, अनिष्ट कल्पना
करे। (६) मान दण्ड-अभिमान करे।
(१०) मित्र दोष दण्ड-माता, पिता तथा भित्र वर्ग को अल्प अपराध के लिये भारी दण्ड करे ।
(११) माया दण्ड कपट करे । (१२) लोभ दण्ड -लालच तृष्णा करे
(१३) इर्यापथिक दण्ड- मार्ग में चलने से होने वाली हिंसा ।
चोदह प्रकार के जीवः-(१) सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्त (२)सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्त (३) बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्त (४) बादर एकेन्द्रिय पर्याप्त (५) वे इन्द्रिय अपर्याप्त ( ६ ) बे इन्द्रिय पर्याप्त (७) त्रि इन्द्रिय अपर्याप्त (८) त्रि इन्द्रिय पर्याप्त (६) चौरिन्द्रिय अप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org