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थोकडा सपहा
(२३२ |
नववी प्रतिमा - सात अहो रात्रि की । ऊपर सम्मान, बिशेष तीन में से एक आसन करे, दण्ड आसन, लगड़ आसन और उत्कट आसन ।
दसवीं प्रतिमा सात अहोरात्र की। ऊपर समान, वि. शेष तीन में से एक आसन करे; गोहद आसन, वीरासन और अम्बुज आसन
इग्यारहवीं प्रेतिना एक अहोरात्र की । जल विना छठ्ठ भक्त करे, ग्राम बाहर दो पांव संकोच कर हाथ लम्बे कर कायोत्सर्ग करे |
बारहवीं प्रतिमा एक रात्रि की। जल विना अठम भक्त करे | ग्राम नगर बाहर शरीर तज कर व आंखों की पलक नहीं मारते हुवे एक पुल ऊपर स्थिर दृष्टि करके, तमाम इन्द्रियें गोप करके, दोनो पांव एकत्र करके और दोनों हाथ लम्बे करके ढासन से रहे । इस समय देव, मनुष्य મ व तिथेच द्वारा कोई उपसर्ग दोवे तो सहन करें । सम्यकू प्रकार से आराधन होवे तो अवधि ज्ञान मनः पर्यव ज्ञान तथा केवल ज्ञान प्राप्त होवे यदि चलित होवे तो उन्माद पावे, दीर्घकालिक रोग होवे और केवली प्रणित धर्म से भ्रष्ट होवे | एवं इन सब प्रतिमा में आठ माह लगते हैं । तेरह प्रकार का क्रिया स्थानक
(१) अर्थदण्ड - अपने लिये हिंसा करे । (२) अनर्थ दण्ड- दूसरों के लिये हिंसा करे ।
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