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________________ थोकडा-संग्रह | " १ दारिक का, एवं ६, तेरहवें गुण० योग ७ - दो मन के, दो वचन, दारिक, श्रदारिक का मिश्र, कार्मण काय योग एवं ७ योग, चौदहवें गुण० योग नहीं । १८: उपयोग द्वार . पहले तीसरे गुण ० ६ - उपयोग - ३ अज्ञान और ३३ दर्शन एवं ६, दूसरे, चौथे, पांचवें गुण०६ उपयोग - ३ ज्ञान ३. दर्शन एवं ६, छठे से बारहवें तक उपयोग ७--४ ज्ञान ३. दर्शन ( एवं ७ ) तेरहवें चौदहवें गुण० तथा सिद्ध में २: उपयोग १ केवल ज्ञान और २ केवल दर्शन | ! ( २१४) १६- लेश्या द्वार पहले से छठे गुण ० तक ६ लेश्या पावे, सातवें गुण ०तीन लेश्या पावे-तेजो, पद्म और शुक्ल । आठवें से बारहवें गुण० तक १ शुक्ल लेश्या तेरहवें गुण ० १ परम शुकुल लेश्या, चौदहवें गुण ० लेश्या नहीं | 4 २० चारित्र द्वार + पहले से चौथे गुण ० तक कोई चारित्र नहीं, पांचवे गुण ० देश थकी सामायिक चारित्र, छटे सातवें गुण० ३२ तीन चारित्र - सामायिक चारित्र, वेदोपस्थानीय चारित्र, परिहार · विशुद्ध, चारित्र, एवं तनि । आठवें नववें गुण ०- २दो चारित्र पावे, सामार्थिक चारित्र और वेदोपस्थापनीय चारित्र, दशवें गुण ० १ सूक्ष्म संपराय चारित्र, इग्यारहवें से चौदहवें गुण० तक १ यथाख्यात चारित्र । 1 Jain Education International For Private & Personal Use Only 3 1 C www.jainelibrary.org
SR No.002997
Book TitleJainagama Thoak Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChhaganlal Shastri
PublisherJainoday Pustak Prakashan Samiti Ratlam
Publication Year1935
Total Pages756
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Karma, & Philosophy
File Size23 MB
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